सौ सौ की शर्त लगा लो, इंडियन सिनेमा में चाहे कोई कितनी भी बड़ी फिल्म बन जाए लेकिन एक ऐसा नाम है जो जब तक इंडियन सिनेमा रहेगा तब तक सब को याद रहेगा, और वो नाम है फिल्म बाग़बान का। सच है कि नहीं ?….फिल्म को रिलीज़ हुए 21 साल हो गए हैं मगर 21 और भी निकल जाएँ ना तब भी फिल्म का हर एक सीन दिमाग़ में फिट हो चुका है।
अब 2024 में बाग़बान लौट कर आई है एक नए नाम के साथ और कमाल की बात देखो फिल्म किस ने बनाई, वो जिन्होंने खुद 2023 में बॉलीवुड का सब से बड़ा कमबैक कराया, डायरेक्टर अनिल शर्मा जिन्होंने ग़दर 2 के साथ वापसी कर के पूरे इंडियन सिनेमा को हिला के रख दिया, ऐसी फिल्म बनाई जो क्रिटिक्स और रिव्यूज़ से भी परे निकली।
‘वनवास’ ये नाम शायद काफी कम लोगों ने सुना होगा क्योंकि फिल्म का प्रमोशन ग़दर 2 के लेवल जैसा नहीं था पर थिएटर्स में आज भीड़ देख के समझ आ गया अनिल शर्मा की फ़िल्में और उनसे बंधी हुई ऑडियंस दोनों उनको कभी धोखा नहीं देंगे। फिल्म वनवास असल में कैसी है उसका जवाब मैं आपको बताता हूँ।
एक बात यहाँ पर क्लियर करना बहुत ज़रूरी है वनवास उस तरह का सिनेमा नहीं है जिसको मोटे चश्मे से जज किया जाए, या तो आप फिल्म से जुड़ोगे या नहीं जुड़ोगे। जैसे बाग़बान उत्तम उदाहरण है, उस फिल्म को आपने कभी इस नज़रिये से नहीं देखा होगा कि वो फिल्म कैसी है ये नहीं सोचा ना ? सिर्फ इमोशनल वे में उसको फील कर सकते हैं। ठीक वैसे ही वनवास हर उस इंसान को देखनी चाहिए जो इमोशन के लिए सिनेमा देखता है रिव्यु, रेटिंग, स्टार ये सब करने वाले लोग पैसे बर्बाद ना करें।
वनवास की कहानी बनारस के पुलिस स्टेशन में मौजूद एक अजीब से आदमी के बारे में है जिसको भूलने की बीमारी है, याददाश्त धीमे – धीमे साथ छोड़ रही है। लेकिन उस से भी पहले इनका साथ छोड़ दिया है इनके बच्चों ने माने बनारस के मेले में परिवार से बिछड़ गए हैं ये और अब कुछ याद नहीं है। ऐसे में अंकल जी को घर वापस ले जाने के लिए हनुमान बन कर आता है वही सेम एक्टर जिसको वापस लाने के लिए ग़दर 2 में सनी देओल खुद हनुमान बन गए थे। लेकिन इस भोले मासूम चेहरे पर मत जाना, बनारस में हर कोई जानता है ये लड़का एक नंबर मक्कार, चोर, लूटेरा है… ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको इसने ठगा नहीं।
और हाँ अंकल को देख कर भी ज़्यादा बेचारा समझने की ग़लती मत करना, ऐसी बातें बोलते हैं ये जिनको सुन कर पुलिस की बोलती बंद हो गई। अपना परिवार नहीं ढूंढ पाएंगे पर मुश्किल है बिना नाम, बिना पहचान, बिना याददाश्त के 142 करोड़ के बीच में अंकल के तीन बच्चों को ढूंढ निकालना असंभव लगता है।
इधर बनारस से 1100 KM दूर शिमला में एक दूसरी कहानी चल रही है। बड़ा सा करोड़ों का घर जिसके छोटे से कमरे में उन्हीं अंकल का फोटो सजा हुआ है। पर सबसे इंटरेस्टिंग चीज कि उस फोटो पर चढ़ा हुआ है फूलों का हार और उस कमरे में मौजूद हर शख्स ये मान चुका है कि अंकल अब इस दुनिया में नहीं रहे।
एक ज़िंदा इंसान सब कुछ भूल कर अपने परिवार को ढूंढ रहा है पर उनके अपने ही घर में बाक़ी घरवाले उनको मरा हुआ मान चुके हैं। ये दोनों कहानी जब आपस में जुड़ेंगी यक़ीन मानो आप बाग़बान की दुनिया में वापस लौट जाओगे क्योंकि फिर से बॉलीवुड सिनेमा नहीं बल्कि असल ज़िन्दगी को पर्दे पर ले कर आया है।
एक चीज होती है फॅमिली सिनेमा बनाना पर उस से भी ऊपर होती है एक ऐसी फिल्म जिसको फॅमिली आपके बिना भी अकेले जा कर एन्जॉय कर सकती है, उस लेवल की फिल्म है वनवास। फिल्म में एक्शन, मारधाड़, मास मसाला, हीरोपंती ये सब देखने को नहीं मिलेगा। फिल्म बनाई गई है असल ज़िन्दगी और सिनेमा के अंतर को ख़त्म करने के लिए। दो घंटे चालीस मिनट का सिनेमा जिसमे नाना पाटेकर का सिर्फ चेहरा है, उनके पीछे की कहानी, इमोशंस हम सब के साथ जुड़े हुए हैं आप खुद को इस फिल्म में ढूंढोगे। अच्छी बात ये है कि फिल्म बहुत ज़्यादा सिंपल है कुछ भी टेढ़ा मेढ़ा नहीं है, दिमाग़ लगाने की ज़रुरत नहीं पड़ती इसलिए हर जेनरेशन इसको एक साथ एन्जॉय कर सकती है।
खुद सोचो आप बिना किसी ट्विस्ट, थ्रिल या लम्बे चौड़े सस्पेंस के भी अगर आप थिएटर में पौने तीन घंटे सीट से उठते नहीं हो तो फिल्म का टॉपिक कितना स्पेशल होगा। और हाँ ये टेंसन लेने की बिलकुल ज़रूरत नहीं है कि फिल्म में हीरो कौन है या हेरोइन कौन है इसमें ग़दर की तरह सनी देओल नहीं है तो फिल्म देखेंगे किसके लिए?, यक़ीन मानो इस फिल्म की कहानी ही इसकी असली हीरो है जिसके सामने एक्टिंग वगैरह कोई नोटिस नहीं करने वाला। बाक़ी नाना पाटेकर खुद में लीजेंड हैं और क्यों इसका जवाब इस फिल्म में खुद उनकी पर्फोमन्स देने वाली है। उत्कर्ष शर्मा का कैरेक्टर फिल्म में लिखा ही इतना बढ़िया गया है कि कोई उनसे नफरत नहीं कर पायेगा, ग़दर वाले जीते का कनेक्शन वापस लौट आएगा। और हाँ म्यूजिक जो है फिल्म का वो काफी इमोशनल टाइप का है, बॉलीवुड में अच्छे शब्द लिरिक्स आजकल सुनंने को नहीं मिलते वो शिकायत वनवास में दूर हो जाएगी।
फिल्म को पांच में से तीन स्टार मिलते हैं, पहला कांसेप्ट पर रेलेटेबल दूसरा इमोशन्स बहुत ज़्यादा रियल हैं, तीसरा परफॉरमेंस नाना पाटेकर की टॉप लेवल।
नेगेटिव ये है कि कहानी रास्ते से थोड़ा भटकती है, बाक़ी एक्टर्स को स्क्रीन टाइम देने के चक्कर में। घर पे देखोगे तो वो सीन रिमोट से आप हटा दोगे। और दूसरी गड़बड़ जैसे बाग़बान की कहानी में सिर्फ अमिताभ को फोकस में नहीं डाला था बल्कि उनके साइड बच्चों वाले कैरेक्टर्स भी चालिकी से लिखे थे, वो चीज आपको वनवास की कहानी में थोड़ी मिसिंग लगेगी। उस लेवल का ट्रिगर करने वाला एंगल फिल्म की कहानी में कम इस्तेमाल किया गया है। ये सब छोड़ कर फिल्म पूरे परिवार के साथ एन्जॉय कर सकते हो बल्कि करनी ही चाहिए। जैसे ग़दर रिव्यु और स्टार्स के परे थी वैसे ही वनवास भी दिल से देखा जाने वाला सिनेमा है।